बीकानेर को अपनी ही धरोहर का हिस्सा हासिल करने के लिए लिखना पड़ रहा है पत्र
आयुक्त की सराहनीय पहल
बीकानेर को ऊंट दस्ता उपलब्ध करवाने संभागीय आयुक्त ने बीएसएफ के महानिदेशक को लिखा पत्र
बीकानेर, 11 जुलाई। जोधपुर की तर्ज पर बीकानेर को भी सीमा सुरक्षा बल का ऊंट दस्ता उपलब्ध करवाने के लिए संभागीय आयुक्त डाॅ. नीरज के. पवन ने सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक को पत्र लिखा है।
संभागीय आयुक्त ने बताया कि बीकानेर रियासत के तात्कालीन महाराजा गंगासिंह ने बीकानेर कैमल कोर (गंगा रिसाला) की स्थापना की। जिसमें सेना में ऊंटों की भर्ती की गई तथा समुचित तरीके से इनका पंजीयन किया गया। अनेक ऐतिहासिक दस्तावेजों में गंगा रिसाला के साहसिक गतिविधियों का उल्लेख किया गया है। उन्होंने बताया कि गंगा रिसाला की उपयोगिता के मद्देनजर देश की आजादी के पश्चात ऊंटों को भारतीय सेना की 13 ग्रेनेटिडर्स का हिस्सा बनाया गया। वर्ष 1965 और वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में ऊंटों के योगदान को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता।👇
संभागीय आयुक्त ने बताया कि सीमा सुरक्षा बल द्वारा इस अमूल्य धरोहर को आज भी संजोकर रखा है। बल के जवानों के साथी के रूप में ऊंट भी ड्यूटी करने में उपयोगी है। ऊंटों का यह दस्ता केमल बैंड के साथ हर वर्ष गणतंत्र दिवस की परेड में हिस्सा लेता रहा है। यह दस्ता पूर्व में बीकानेर में था, बाद में इसे जोधपुर स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने बताया कि बीकानेर में ऊंट उत्सव आयोजित होता है। देश का एकमात्र केन्द्रीय ऊष्ट्र अनुसंधान केन्द्र भी बीकानेर में स्थित है। इन सभी स्थितियों के मद्देनजर उन्होंने ऊंटों का एक दस्ता जोधपुर की तर्ज पर बीकानेर में भी उपलब्ध करवाने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि दस्ता स्वीकृत किए जाने पर ऊंटों व इनके सवार के लिए वेशभूषा, केमल बैंड सहित अन्य साजो-सामान जिला प्रशासन द्वारा उपलब्ध करवाए जाएंगे। 👇
जानकारी के अनुसार रियासतों के विलिनीकरण के दौरान बीकानेर स्टेट ने बीकानेर को शैक्षणिक राजधानी बनाने की शर्तें रखीं थी। तब बीकानेर को शिक्षा निदेशालय मिला, लेकिन कमजोर नेतृत्व के चलते निदेशालय के कई बड़े अनुभाग प्रदेश में अन्यत्र स्थानांतरित कर दिए गए। इस प्रकार शिक्षा निदेशालय को कमजोर कर दिया गया। यहां की सरकारी प्रेस को हासिये पर ला दिया। एसबीबीजे में बीकानेर का नाम था जिसकी देश विदेश में पहचान थी उसे भी एसबीआई में विलिनीकरण कर खत्म कर दिया। इनके लिए कोई जनप्रतिनिधि नहीं बोला। गंगा रिसाला बीकानेर की धरोहर थी, कैमल दस्ता उसे भी चुपचाप जोधपुर भेज दिया। यह तो वर्तमान आयुक्त धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने इस धरोहर के लिए एक प्रयास तो किया। अब समय आ गया है कि उन तमाम धरोहरों का पता लगाया जाए जो बीकानेर की थीं और जिन्हें पुनः बीकानेर लाने के लिए अभियान चलाया जाए। एक संस्था गठित की जाए जिसके बैनर तले बीकानेर के हक की लड़ाई लड़ी जाए। ताकि विकास की दौड़ में पीछे रह गए बीकानेर को मजबूती से आगे बढ़ाया जा सके।