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न बिड़ला न वसुंधरा, न गजेंद्र न पूनिया…

✍️कैलाश शर्मा✍️

राज्यसभा चुनाव परिणामों ने राजस्थान की भाजपा राजनीति में जहाँ निराशा पैदा की, मनोबल तोड़ा, वहीं क्षत्रपों की विदाई का संकेत दे दिया है। एक बात बहुत स्पष्ट हो गई है कि राजस्थान की भाजपा राजनीति के जो षोडष रत्न हैं, वसुंधरा राजे, ओम बिड़ला, सतीश पूनिया, गुलाब चंद कटारिया, गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन मेघवाल, कैलाश चौधरी, भूपेन्द्र यादव, किरोड़ी लाल मीणा, मदन दिलावर, दीया कुमारी, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, सीपी जोशी, जसकौर मीणा, रंजीता कोली, स्वामी सुमेधानंद और ओमप्रकाश माथुर.. इनमें से किसी को भी अगले विधानसभा चुनाव में राजस्थान से भाजपा का फेस नहीं बनाया जाएगा।
सबसे पहले चर्चा सबसे बड़े नाम ओम बिड़ला की, वे अभी लोकसभा अध्यक्ष हैं जो कि बहुत बड़ी डिग्निटी वाला पद है। पर उनके नाम को लेकर जिस तरह की लाबिंग दिल्ली दरबार में हो रही है, उससे भाजपा के नेतृत्व निर्णायक प्रसन्न नहीं हैं, बल्कि इस लाबिंग से एक नकारात्मक संदेश ओम बिड़ला के प्रति जा रहा है। बहुत संभव है, उन्हें विधानसभा चुनाव टिकट ही न मिले। असमय लाबिंग और मुख्यमंत्री बनने की इच्छा अभिव्यक्ति ने उनकी राह में अवरोध पैदा कर दिए हैं।
वसुंधरा राजे की बात करें, तो 1985 के विधानसभा चुनाव से शुरु हुई राजस्थान में उनकी राजनीतिक पारी अब अवसान की ओर है। दिल्ली दरबार किसी भी स्थिति में उन्हें फेस बनाने को तैयार नहीं है, इसके पीछे की अंतर्कथा बड़ी है, जिसका जिक्र फिर कभी, लेकिन यह भी लग रहा है कि अगले विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे द्वारा बताए/सुझाए लोगों को टिकट मिलना तो दूर खुद उनका टिकट भी संकट में है। ऐसे में लगता है कि वसुंधरा राजे का राजस्थान की राजनीति में राजनीतिक अध्याय अब संपूर्णता की ओर है और उन्हें विश्राम के लिए कहा जा सकता है।
राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया भी वानप्रस्थ के लिए निर्देशित किए जा सकते हैं। उप नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ ने दिल्ली में कुछ मैनेज करना शुरू किया है लेकिन जहाँ वे एप्रोच कर रहे हैं वहाँ अधिक संभावना नहीं है। राजेंद्र सिंह राठौड़ का गणित इतना ही है कि एक बार टिकट दे दिया जाए, इससे अधिक स्कोप उनका भी नहीं है।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया की स्थिति पर नो कमेंट्स, बस पद से विदाई के संकेत है, दिल्ली दरबार ने मानस बना लिया है, घोषणा कभी भी हो सकती है।
गजेंद्र सिंह शेखावत की राजस्थान में राजनीतिक स्वीकार्यता का आकलन किया जा रहा है, पर अपेक्षित रेस्पांस नहीं मिल रहा। अर्जुन मेघवाल को इतना बड़ा मौका मिला, लेकिन वे राजस्थान में खुद को भाजपा के मजबूत फेस के तौर पर स्थापित नहीं कर पाए, अब तो उनके गृह जिले बीकानेर में ही उनका व्यापक विरोध है। राज्यवर्धन सिंह राठौड़ एक जनप्रतिनिधि के तौर पर ही सफल नहीं हो पाए, उनके संसदीय क्षेत्र के मतदाता उनकी अकर्मण्यता से व्यथित हैं। ओम माथुर को राज्यसभा टिकट न देकर भाजपा ने विश्राम इंगित करा दिया है।
भूपेंद्र यादव की परफॉर्मेंस श्रम मंत्री के रूप में प्रभावी नहीं रही है, यहाँ तक कि लोकतंत्र के प्रहरी पत्रकारों के श्रम कानून संबंधित हितों की रक्षा ही नहीं कर पाए।
किरोडीलाल मीणा राज्यसभा में है, भाजपा के सर्वाधिक सक्रिय सांसद हैं, लेकिन उम्र के उस मुकाम पर आ गए, जहाँ से अब बड़ी राजनीतिक संभावना नजर नहीं आती।
सीपी जोशी को चितौड़ के सांसद के तौर पर मौका मिला, लेकिन वे अपना कद प्रांत व्यापी नहीं बना पाए, बल्कि ठहर गये। उनमें स्कोप था, लेकिन विजनरी एप्रोच नहीं होने से थम गये। जसकौर मीणा पूर्वी राजस्थान की राजनीति में किरोडीलाल मीणा से जूझने मे अपना वक्त अधिक खर्च करती रही, अन्यथा उनके लिए अच्छी संभावना थी।
स्वामी सुमेधानंद को बाबा रामदेव की अनुशंसा पर टिकट मिला और अच्छा मौका भी, लेकिन लीडरशिप क्वालिटी नहीं होने से वे पिछड़ गए।
कैलाश चौधरी को भाजपा की जाट राजनीति में उत्तर भारत का फेस बनने का मौका पार्टी ने दिया, लेकिन दो फीसदी भी कामयाब नहीं हुए।
दो नाम है, जिनमें future leadership की संभावना है, पहला दीयाकुमारी और दूसरा रंजीता कोली, लेकिन दोनों का स्कोप खुद की गलतियों से सिमट रहा है। दीयाकुमारी की दिक्कत है उनका attitude और रंजीता कोली की परेशानी है सक्षमता का अभाव।
भाजपा आलाकमान ने नेतृत्व विकसित करने का अवसर नये लोगों को बहुत दिया, लेकिन अधिकांश पंक्चर ही साबित हुए, यह देखकर दिल्ली दरबार भी व्यथित है। भाजपा ने जिन्हें मौका दिया, वे न तो बड़े राजनीतिक फेस बन पाए और न ही अपनी जाति-समुदाय में अपना वजूद विस्तृत कर पाए।
निष्कर्ष रुप मे कहा जा सकता है राजस्थान में अगले विधानसभा चुनाव मे नेतृत्व को लेकर भाजपा आलाकमान अभी खामोश है, बल्कि यह तय है कि चुनाव सिंबल पर लड़ा जाएगा।
अगर बहुमत आता है ( जिसकी संभावना अभी शून्य है), तो 8 सिविल लाइंस का हकदार कौन होगा, यह समय से पूर्व बता देंगे।
तब तक
हरि ओम निरंजन राम
भजमन दादूराम.. सतराम.. दादूराम.. (लेखक दैनिक नफा-नुकसान में संपादक के पद पर रह चुके है)

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