BikanerExclusiveReligious

बीकानेर में उत्साह से निकाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा

0
(0)

बहन की इच्छा पूर्ति के लिए भाई ने रथ में बिठाकर पूरे नगर का कराया भ्रमण

बीकानेर । बीकानेर में शुक्रवार को श्रद्धालुओं का जबरदस्त सैलाब नजर आ रहा था। खासकर महिलाएं बड़े भक्ति भाव से अपने प्रभु के दर्शनों के लिए आतुर हो रहीं थीं। मंदिर में महा आरती चल रही थी और ढोल नगाड़ों की ध्वनि के बीच श्रद्धालु पूरे सूर ताल के साथ आरती गा रहे थे। यह नजारा था जेल वेल रोड स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर का। जहां महा आरती के बाद रथ यात्रा का शुभारंभ हुआ। रथयात्रा का शुभारंभ बीकाजी ग्रुप के प्रमुख शिवरतन अग्रवाल फन्ना बाबू ने नारियल फोड़कर किया। इस बीच रथयात्रा बड़ी धूमधाम से निकाली गईं। इस बार पिछले साल से भी ज्यादा श्रद्धालु रथयात्रा में शामिल हुए। सभी लोगो ने मंदिर के अंदर अपनी-अपनी भागीदारी निभाई।

कार्यक्रम की पूरी जिम्मेदारी निभाते हुए जगन्नाथ मंदिर विकास समिति के अध्यक्ष घनश्याम लखाणी ने बताया कि यात्रा में महिलाओं की संख्या आपार रूप से रही और काफी बड़ी संख्या मे दर्शनार्थियों ने रथ की परिक्रमा कर दर्शन लाभ उठाया। आज के कार्यक्रम में शिव रतन अग्रवाल फन्ना बाबू, घनश्याम लखाणी, जिला उद्योग संघ के अध्यक्ष द्वारकाप्रसाद पचीसिया, कारोबारी राजेंद्र डिडवानिया, रमेश अग्रवाल, पीयूष सिंघवी, सुरेंद्र पटवा, हीरालाल हर्ष, महेंद्र अग्रवाल, जेठानंद व्यास, गोकुल जोशी, जगमोहन जोशी आदि गणमान्य लोग मौजूद थे। 👇

इसलिए निकालते हैं रथ यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथजी की पुरी में रथ यात्रा निकाली जाती है। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के अलावा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ भी निकाला जाता है। इस रथ यात्रा को लेकर मान्यता है कि एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनसे द्वारका के दर्शन कराने की प्रार्थना की थी। तब भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन की इच्छा पूर्ति के लिए उन्हें रथ में बिठाकर पूरे नगर का भ्रमण करवाया था और इसके बाद से इस रथयात्रा की शुरुआत हुई थी। जगन्नाथजी की रथ यात्रा के बारे में स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण में भी बताया गया है। इसलिए हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस रथयात्रा में शामिल होकर इस रथ को खींचता है उसे सौ यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।

IMG 20220701 WA0012

800 साल पुराने इस मंदिर में भगवान कृष्ण को जगत के नाथ जगन्नाथजी के रूप में पूजा जाता है और इनके साथ उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी विराजमान हैं। रथयात्रा में तीनों ही देवों के रथ निकलते हैं। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के साथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा के लिए अलग-अलग रथ होते हैं और इन रथों को बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया से होती है। रथयात्रा में सबसे आगे बलराम और बीच में बहन सुभद्रा का रथ रहता है। सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। सभी के रथ अलग-अलग रंग और ऊंचाई के होते हैं।

भगवान बलरामजी के रथ को ‘तालध्वज’ कहा जाता है और इसकी पहचान लाल और हरे रंग से होती है। वहीं सुभद्रा के रथ का नाम ‘दर्पदलन’ अथवा ‘पद्म रथ’ है,उनके रथ का रंग काला या नीले रंग को होता है, जिसमें लाल रंग भी होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष अथवा गरुड़ध्वज कहा जाता है, इनका रथ लाल और पीले रंग का होता है।

रथ हमेशा नीम की लकड़ी से बनाया जाता है, क्योंकि ये औषधीय लकड़ी होने के साथ पवित्र भी मानी जाती है। हर साल बनने वाले ये रथ एक समान ऊंचाई के ही बनाए जाते हैं। इसमें भगवान जगन्नाथ का रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलराम का रथ 45 फीट और देवी सुभद्रा का रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।

भगवान के रथ में एक भी कील या कांटे आदि का प्रयोग नहीं होता। यहां तक की कोई धातु भी रथ में नहीं लगाई जाती है। रथ की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन और रथ बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से होती है। तीनों रथ के तैयार होने के बाद इसकी पूजा के लिए पुरी के गजपति राजा की पालकी आती है। इस पूजा अनुष्ठान को ‘छर पहनरा’ नाम से जाना जाता है। इन तीनों रथों की वे विधिवत पूजा करते हैं और ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मण्डप और यात्रा वाले रास्ते को साफ किया जाता है।

रथयात्रा ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के साथ रथ को लोग खींचते हैं। जिसे रथ खींचने का सौभाग्य मिल जाता है, वह महाभाग्यशाली माना जाता है। जगन्नाथ मंदिर से रथ यात्रा शुरू होकर 3 कि.मी. दूर गुंडीचा मंदिर पहुँचती है। इस स्थान को भगवान की मौसी का घर भी माना जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार यहीं पर विश्वकर्मा ने इन तीनों प्रतिमाओं का निर्माण किया था, अतः यह स्थान जगन्नाथ जी की जन्म स्थली भी है। यहां तीनों देव सात दिनों के लिए विश्राम करते हैं। आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ पुनः मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। वापसी की यह यात्रा बहुड़ा यात्रा कहलाती है। जगन्नाथ मंदिर पहुँचने के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच देव-विग्रहों को पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है

स्कंद पुराण में वर्णित है कि जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होकर जगत के स्वामी जगन्नाथजी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह सारे कष्टों से मुक्त हो जाता है, जबकि जो व्यक्ति जगन्नाथ को प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाता है वो सीधे भगवान विष्णु के उत्तम धाम को प्राप्त होता है और जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करता है उसे मोक्ष मिलता है। यह संपूर्ण पौराणिक विवरण टीआईडी न्यूज के पाठक फुसाराम व्यास ने उपलब्ध करवाया।

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

As you found this post useful...

Follow us on social media!

Leave a Reply