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गृहस्थ में रहें, परंतु अनासक्ति की साधना रहे मोह- राग ना करें- महाश्रमण

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बीकानेर। आदमी जीवन चलाने के लिए पदार्थों का उपयोग करता है! भोजन करता है , पानी पीता है, कपड़े पहनता है और मकान में भी रहता है। जीवन की कई आवश्यकताएं होती है। श्रावकों को गृहस्थ में भी रहना होता है। श्रावक गृहस्थ में रहें भले ही लेकिन आसक्ति नहीं होनी चाहिए, उसे कमल के फूल की तरह रहने का प्रयास करना चाहिए। भावों को शुद्ध रखना चाहिए। अंदर की वृत्तियों को मिटाने से यह शुद्धि आती है। इसका अभ्यास करना चाहिए, यह गुरु मंत्र आचार्य श्री महाश्रमण ने गंगाशहर स्थित तेरापंथ भवन में उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए दिया। श्री जैन महासभा के जैन लूनकरण छाजेड़ ने बताया कि आचार्य श्री महाश्रमण चार दिन के विहार पर गंगाशहर आए हुए हैं, जहां उनके स्वागत, अभिनंदन में साधु- साध्वियों, श्रावक – श्राविकाओं ने मंगल गीत प्रस्तुत किए वहीं दिन में पारिवारिक सेवा का लाभ श्रावकों को मिला। संध्या में प्रबुद्धजन सम्मेलन आयोजित किया गया। बुधवार को उनके विहार का दूसरा दिन रहा, इस मौके पर अपने नित्य नियम प्रवचन में आचार्य श्री ने मिट्टी के दो गोलों का उदाहरण देकर बताया कि दो मिट्टी के गोले एक सूखा और दूसरा गीला बनाकर जब दीवार पर मारा जाए तो गीला चिपक जाता है और सूखा टकराने से टूट जाता है। ठीक वैसे ही सांसारिक जीवन में आस्था रखनी चाहिए, मोह से बचने का अभ्यास करते रहना चाहिए। धर्म संघ में ध्यान के लिए यह अनिवार्य है!।

आचार्य श्री ने कहा कि रोटी, पानी, हवा प्रथम कोटि की आवश्यकता होती है। इनके बगैर जीवन संभव नहीं है। हवा सबसे ज्यादा आवश्यक है। इसके बगैर तो रहा ही नहीं जा सकता है। पानी के बगैर कुछ समय तक रह सकते हैं, लेकिन ज्यादा नहीं रह सकते हैं। भोजन के बगैर कुछ दिन और जिया जा सकता है। इस प्रकार धरती पर तीन रत्न है, जल, अन्न और अच्छी वाणी तीसरा रत्न है। आदमी की अच्छी वाणी संबल दे सकती है। इसलिए सुभाषित वाणी का बहुत महत्व है। वाणी ही बनते काम बिगाड़ सकती है और बिगड़े काम संवार भी सकती है। एक पुरानी कहानी के माध्यम से उन्होंने सुभाषित वाणी का महत्व भी बताया और कहा कि इसलिए जब भी बोलें, जहां भी बोलें, सोच- समझकर एवं संभल कर बोलने का प्रयत्न करें। क्योंकि अच्छा और मीठा बोलने वाला स्वयं तो प्रसन्न रहता है, दूसरों को भी प्रसन्न करता है। कड़वा, कषैला बोलने वाले कष्ट पा सकते हैं।

उपहार के महत्व को बताते हुए आचार्य श्री ने कालू गणी जी का प्रसंग बताते हुए कहा कि एक बार गंगा शहर में मुनि पृथ्वीराज स्वामी रहते थे, वह कालू गनी के साथ भी रहते थे। एक बार कालू गणी जी विहार पर थे। उन्होंने किसी के साथ पृथ्वीराज स्वामी के लिए कपड़ा भेजा ! जब वह साधु मुनि जी के पास कपड़ा लेकर पहुंचा तो उन्होंने उसे पाकर ना केवल प्रसन्नता जताई बल्कि बारंबार सर पर लगाया! यह सब उनके पास खड़े एक अन्य मुनी देख रहे थे उन्होंने पृथ्वीराज स्वामी से कहा कि आप इतने से कपड़े को क्या बार-बार सर पर लगा रहे हैं ! इसमें ऐसी क्या खास बात है, ऐसे कपड़े तो गंगा शहर के बाजार में भी बहुत मिल जाएंगे! इस पर पृथ्वीराज स्वामी ने कहा कि तुम ठीक कहते हो , ऐसे कपड़े गंगा शहर बाजार में बहुत मिल जाएंगे, लेकिन तुम इसकी विशेषता नहीं जानते हो! यह कपड़ा मुझे कालू गनी जी ने भेजा है ! इसका मतलब यह कि उन्होंने मुझे याद किया है ,इसलिए यह उपहार भेजा है ! आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा की उपहार का भी बहुत महत्व है ! साथ ही संघ में पानी के महत्व को उदाहरणों से प्रतिपादित किया!

इन्होंने किया स्वागत- अभिनंदन
जैन लूनकरण छाजेड़ ने बताया कि गंगा शहर की साध्वियों ने चंदन की चुटकी स्वागत गीत प्रस्तुत किया! गीत के बोल गंगाणे री माटी बोले सगला आओ रे के माध्यम से उन्होंने चातुर्मास की कामना की, साध्वी वर्या ने कहा कि परिवर्तन से पुरुषार्थ लाया जा सकता है! परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं एक प्राकृतिक और दूसरा पुरुषार्थ से लाने की बात कही, स्वभाव को बदलने के लिए उन्होंने पुरुषार्थ करने की बात कही, अंगुलीमाल एवं भगवान वाल्मीकि जी का उदाहरण भी दिया! साध्वी दीपमाला, कंचनबाला गंगाशहर शांति निकेतन के शांति मुनि जी मुन्नी श्रेयांश कुमार सहित अन्य साधु साध्वी सभा स्थल पर मौजूद रहे एवं आचार्य श्री के प्रवचनों का श्रवण किया! श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, बीकानेर के मंत्री रतनलाल छलाणी ने बताया कि साध्वी पुष्य प्रभा एवं मुमुक्षु समता जी ने गुरु के गुणों का बखान करते हुए उन्हें हीरे के समान बताते हुए अभिनंदन वंदन किया मुनि प्रबोद्ध कुमार ने महाश्रमण जी के इंग्लिश में 11 शब्द का उच्चारण कर अपने जीवन में उनका महत्व बताया! मुनि विमल बिहारी जी साध्वी दीपमाला जी ने कविता पाठ किया ! साध्वी कंचन बाला ने आचार्य श्री महाश्रमण एवं साध्वी प्रमुखा विश्रुत विभा जी का अभिनंदन किया!

तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष ममता रांका ने महिला मंडल एवं महिला समाज की ओर से आचार्य श्री का स्वागत अभिनंदन करते हुए कहा कि गंगा शहर में ना विसर्जन की प्यास है आप के द्वारा 120 दिन की अमृत वर्षा हो जाए तो गंगा ने के भाग उदय हो जाएंगे! तेरापंथ कन्या मंडल द्वारा गीत पुलकित हर कलियां हर साई है प्रस्तुत किया गया तेरापंथ युवक परिषद की ओर से विजेंद्र छाजेड़ ने ,मनोज- प्रिंयका छाजेड़ , आचार्य श्री का स्वागत अभिनंदन किया !

इस अवसर पर आचार्य श्री महाश्रमण ने श्रावक -श्राविका युगल को धर्म संघ के प्रति निष्ठा रखने नियमों की पालना करने सहित गुरु दीक्षा दी साथ ही उन्हें संवत सरी का एवं सामायिक करने करने का निर्देश भी दिया! तेरापंथ किशोर मंडल द्वारा स गीत गंगाने पर कृपा आपकी गुरुदेव मेरे, स्वागत हम करते आशीर्वाद दो कि मैं तर जाऊं इस भवसागर से, हे युग प्रधान तुम मेरे भाग्य विधाता एक चौमासा तो हमको भी मिले प्रस्तुत किया!

तत्वप्रचेता के संगठन में महिला मंडल ने गीत मंगल गांवा रे, गुरुदेव पधारे हैं, कन्हैयालाल डाकलिया परिवार ने स्वागत गीत में चातर्मास की कामना करते हुए प्राणां सूं भी प्यारो लागे माने नेमा नंद जी, निरख निरख मन मोह मुद्रा जन-जन में आनंद जी ,गीत प्रस्तुत किया! राजेन्द्र सेठिया ने आचार्य श्री को अवगत कराया कि आचार्य तुलसी एवं महाप्रज्ञ जी स्वयं चलाकर कहते थे कि इस बार चातर्मास गंगाशहर में होगा लेकिन गुरुवर आपसे पूरे समाज को कहना पड़ रहा है, इसकी कृपा होनी चाहिए!

नैतिक आंचलिया, सुमन सेठिया, कोमल, विजयलक्ष्मी सेठिया, जय श्री बोथरा, प्रवीण मालू ने भी भावाभिव्यक्ति देकर आचार्य श्री का वंदन किया! मंगल पाठ के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ! मंच संचालन दिनेश मुनि ने किया!

जैन जीवन शैली पर विशेष प्रवचन आज
श्री जैन महासभा के जैन लूणकरण छाजेड़ ने बताया कि गुरुवार को आचार्य श्री महाश्रमण जैन जीवन शैली पर विशेष प्रवचन देंगे उन्होंने सभी जैन समाज के फिर वे चाहे दिगम्बर हो, तेरापंथी हो या मंदिर मार्गी सभी से कार्यक्रम में पहुंचने तथा उपस्थित जन को यह संदेश सभी तक पहुंचाने का आग्रह किया है!

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