बीकानेर में पहाड़ों की ऐसी विधा जिसमें कम्यूटर कैल्कुलेटर के बटन दबाने तक तो हो जाता है बड़े से बड़ा हिसाब
पौराणिक विद्या महाजनी-बाणिका व पहाडा के सिद्धहस्त ‘मारजाओं ‘ का रमक झमक करेगा अभिनन्दन
बीकानेर। नगर स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में बीकानेर की पुरातन शिक्षा प्रणाली के सिद्ध हस्त शिक्षकों ‘मारजाओं’ का रमक झमक अभिनन्दन करेगा। रमक झमक के अध्यक्ष प्रहलाद ओझा ‘भैरु’ ने बताया कि बीकानेर की रियासत काल में मुडिया लिपि में महाजनी पद्धति ही राज काज में बही खातों में सर्वाधिक प्रयोग होता था। उस समय जो लिपि होती थी उसे ‘बाणिका’ में लिखा जाता था। गणित के अध्ययन में 1 से 40 तक और सवाया, डेढा,पूणा,उठा व ढुंचा यानि 1.25, 1.50, 1.45 के पहाड़े भी होते थे और इनकी मालणी (स्वरबद्ध कविता) होती थी जिसकी भाषा लय ताल से सीखने में आसानी होती थी।
महाजनी में पढ़ाने वाले शिक्षक जिसे मारजा कहा जाता है । उनसे पढ़े शिष्य गणित में सिद्धहस्त होते थे। कम्यूटर व केल्कुलेटर के बटन दबाने तक के समय में तो वे पहाड़े द्वारा बड़े से बड़ा हिसाब कर लेते।ओझा ने बताया कि शहर के गंगाशाही बही पट्टा बाणिका में ही लिखा हुआ है जिसका हिंदी अनुवादन करने वाले चंद लोग ही बचे है। बीकानेर शहर में उन दिनों कि स्कूल जिसे ‘पौषवाळ’ कहा जाता था उनमे पढ़ाने वाले शिक्षक ‘मारजा’ जिनकी उम्र 85 से 95 के बीच है ऐसे 4 मारजाओं रामदेव आसोपा, बद्रीप्रसाद भोजक, गिरधर लाल सेवग व बृजलाल पुरोहित का बारह गुवाड़ चौक ‘रमक झमक’ में सोमवार सुबह 10 बजे अभिनन्दन किया जाएगा।
रमक झमक के राधे ओझा ने बताया कि इस अवसर पर रियासतकालीन समय में नगर के शिक्षा स्थल ‘पौषवाळ’ में अनुशासन व पढ़ाने वाले मारजाओं के प्रति शहर में सम्मान के साथ साथ पहाड़ों का आधुनिक युग में महत्व पर चर्चा की जाएगी। राधे ओझा ने बताया कि इन मारजाओं का सम्मान और उनके अनुभव सुनना निश्चित रूप से शहर के लोगों के लिये महत्वपूर्ण होगा। उनसे पढ़े शिष्य उनके सम्मान को लेकर उत्साहित है।