सामंतवाद, जातिवाद और तानाशाही के बीच उपजा न्याय का बीज…
बीकानेर । वैसे तो हिंदुस्तान के लोकतंत्र में सभी को न्याय के पक्ष में गुहार लगाने की इजाजत है। हर वह पीड़ित व्यक्ति जिसे लगता हो कि मेरे साथ अन्याय हुआ है किसी भी तंत्र तथा किसी भी व्यवस्था के खिलाफ खड़े होकर वह अपने हक और अधिकार की मांग कर सकता है। लोकतांत्रिक तरीके से की गई मांग को पूरा होने या ना होने के बीच आड़े आता है। सामंतवाद – जातिवाद व तानाशाही, इन सब चीजों के बीच में से न्याय की कल्पना करना व न्याय हक की लड़ाई लड़ते समय मुकाम तक पहुंच जाना अपने आप में एक बहुत बडी चुनौती है। स्थितियां बदलने से लेकर न्याय मिलने तक की प्रक्रिया में सामंतवाद अपनी एक अहम भूमिका निभाता है जिसका तरोताजा उदाहरण हमें गत दिनों राजस्थान के बीकानेर (राजियासर) क्षेत्र में देखने को मिला ।
बीकानेर से सूरतगढ़ के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग 62 पर तीन जगहों पर टोल प्लाजा को चलाने वाली तथा सड़क निर्माण में कार्यरत एक निजी कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी की 6 फरवरी 2022 को नौकरी पर रहते हुए ऑन ड्यूटी कंपनी की गाड़ी में आकस्मिक मृत्यु सड़क दुर्घटना में हो जाती है। सामंतवाद इस कदर रहता है कि 12 घंटे बीत जाने तक महज 5 किलोमीटर की दूरी पर रहने वाले परिवार को सूचित नहीं किया जाता है कि आपके घर का चिराग बुझ गया है और व्यवस्था इस प्रकार की खड़ी करने का प्रयास किया जाता है कि इस दुर्घटना को कैसे भी करके मुद्दा ना बनने दिया जाए और संबंधित सारे पत्र प्रणाली को नष्ट कर दिया जाता है। अपने घर का चिराग बुझा देखकर घर परिवार के लोग व्याकुल होकर मृतक के अंतिम क्रिया कर्मों में व्यस्त हो जाते हैं और इधर ईस्ट इंडिया की तर्ज पर चलने वाली निजी कंपनी में सामंतवाद की हर प्रकाष्ठा को पार करते हुए इस मामले को बुझा देती है।
एक महीने तक ना कोई कंपनी का कर्मचारी पीड़ित के घर जाता है और ना ही किसी प्रकार की संवेदना व्यक्त करने का कोई कार्य कंपनी द्वारा या कंपनी के नुमाइंदों द्वारा किया जाता है फलस्वरुप एक महीने बाद परिजनों को यह कहकर दुत्कार दिया जाता है कि अब कुछ नहीं हो सकता मृतक हमारी कंपनी का कर्मचारी नहीं था आपसे जो बन सकता है करिए, 1 महीने के बाद पीड़ित परिवार लोकतंत्र में सबसे ज्यादा मजबूत क्रियान्वयन करने वाली जागरूक जनता से अपील करता है और उन्हीं जनता के बीच में से निकल कर कुछ सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में चेहरे बाहर आते हैं और वह चेहरे इस घटना को जन जन तक पहुंचाने का कार्य करते हैं जिसके फलस्वरूप 24 मार्च को एक बहुत बड़ा आंदोलन करने का आह्वान किया जाता है।
आसपास क्षेत्र के आम व्यक्ति पीड़ित के रिश्तेदार जनप्रतिनिधि सभी लोग 24 तारीख को धरना स्थल पर पहुंचने का प्रयास करते हैं इन सबके बीच कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने इस घटना को जाति से जोड़ा, पंथ से जुड़ा और संप्रदाय से जोड़ते हुए निस्वार्थ रूप से पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलवाने के लिए प्रयासरत इस आयोजन से ना केवल किनारा करते हैं बल्कि धरने में लोग शामिल ना हो इस तरह के भी प्रयास जारी रखते हैं मानवता के लिए न्याय की लड़ाई में इस प्रकार से सामंतवाद और जातिवाद का मिश्रण होना कहीं ना कहीं दुख को प्रकट करता है ठीक उसी दिन शाम को प्रशासन द्वारा तानाशाही रवैया अपनाते हुए न्याय के लिए गुहार लगाते आम लोगों के ऊपर लाठीचार्ज कर दिया जाता है बुजुर्गों और युवाओं पर लाठी चार्ज होने से काफी लोग घायल भी हो जाते हैं अब सामंतवाद, जातिवाद और तानाशाही तीनों ने अपने दम पर मिलकर मानव व लोक कल्याणकारी कार्य हेतु किए जा रहे धरने को विफल करने का सारा प्रयास करते हैं परंतु आम लोग तब तक जागरूक हो चुके होते हैं और लोगों की संख्या बढ़नी शुरू होती है लोग धरना स्थल की तरफ कूच करते हैं।
फिर 25 और 26 के बाद 27 मार्च को एक जन सैलाब के रूप में दूर-दूर से जनप्रतिनिधि आम सामाजिक कार्यकर्ता जागरुक व्यक्ति धरना स्थल की ओर कूच करते हैं फल स्वरूप हजारों की संख्या में जब राष्ट्रीय राजमार्ग राजियासर उप तहसील पर लोग इकट्ठे होकर न्याय हक और अधिकार की आवाज को बुलंदी से रखते हैं तब ना केवल सामंतवाद को बढ़ावा देने वाली कंपनी ना केवल जातिवाद को बढ़ावा देने वाले ऐसे लोग बल्कि तानाशाही रवैया अपनाने वाली प्रशासन को भी घुटने के बल आकर झुकना पड़ता है और झुककर धरना स्थल पर हजारों की संख्या में मौजूद लोगों के नेतृत्व करने वाली संघर्ष समिति से वार्ता के लिए प्रस्ताव आता है और प्रस्ताव में नियंत्रित सुझाव को कंपनी में प्रशासन के बीच रखने के बाद आम लोगों की आक्रोश को देखते हुए मजबूरन प्रशासन को तानाशाही रवैया छोड़ते हुए, सामंतवादी कंपनी पर दबाव बनाकर लोकतंत्र के पुरोधा कहे जाने वाले आम व्यक्तियों की भावनाओं को समझते हुए जिस व्यक्ति को कंपनी ने कर्मचारी मानने से इनकार कर दिया था उसी व्यक्ति को 31 लाख 50 हजार का मुआवजा राशि स्वीकृत होती है।
इसके साथ साथ गत वर्षो में करीबन 6 और ऐसे मामले जिसके लिए भी ₹10/10 लाख की मुआवजा राशि स्वीकृत होती है यह जीत तमाम उन सामान्य, आम आदमियों की जीत है जिन्होंने निस्वार्थ भाव से जाति, पंथ, रंग, संप्रदाय की राजनीति से ऊपर उठकर राजनीतिक दलों के व्यवहारों से ऊपर उठकर इस नेक कार्य में अपनी मेहनत झोंक दी, जीत आम जनता की होती है लेकिन बीकानेर क्षेत्र के तमाम राजनीतिक दल तथा वर्तमान में राजनीतिक कुर्सियों पर काबिज नेता की नियत और शिद्दत का परिचय सभी से हो जाता है आम लोगों को पता चल जाता है कि मुसीबत के समय सारे राजनीतिक दल ना जाने किन बिलों में छुप जाते हैं और कोई काम आता है तो वह केवल और केवल आम व्यक्ति वहीं आम व्यक्ति जिसे यह राजनीतिक दल जीतने के लिए सत्ता हथियाने के लिए जिनका इस्तेमाल करता है और एक बार फिर बीकानेर जिले की राजनीति को पूर्ण रूप से उजागर करते हुए एक आम पीड़ित, शोषित, गरीब किसान को चंद सामाजिक कार्यकर्ताओं व जागरूक बंधुओं की सूझबूझ के साथ आम लोगों की मेहनत की बदौलत न्याय मिलता है और यह जीत इस बात का एहसास कराती है कि..
सारे साथी काम के सबका अपना मोल,
मुसीबत में जो साथ खड़ा रहे वह सबसे अनमोल ।।
यह आंदोलन एक बार फिर इस बात का विश्वास दिलाता है कि जीत चाहे न्याय के लिए हो या राजनीतिक या सामाजिक हो, जीत का सेहरा आम जनता के सिर्फ बांधा जाना चाहिए, जीत हमेशा आम और साधारण व्यक्ति के हाथ में होती है ना कि राजनीतिक दलों तथा इन दलों की चारगुजारी करने वाले कार्यकर्ताओं तथा छूट भैया नेताओं के हाथ में…।
✍️ सम्पत सारस्वत “बामनवाली”
सामाजिक कार्यकर्ता व समीक्षक, प्रसार भारती दिल्ली