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लोक से ही समृद्ध होगा राजस्थानी रंगमंच – रंगा

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बीकानेर। प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ के साझा आयोजन के तहत आज दोपहर बाद विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर एक ई- परिसंवाद का आयोजन रखा गया।
ई- परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ राजस्थानी कवि कथाकार कमल रंगा ने कहा कि राजस्थानी लोक नृत्य लोक संगीत लोकनाट्य सहित लोक में रचे बसे कथानक आदि के माध्यम से ही राजस्थानी रंगमंच समृद्ध हो सकता है क्योंकि राजस्थानी लोक साहित्य और उसके से जुड़े हुए विभिन्न पक्ष आज भी समाज में रचे बसे हैं ऐसी स्थिति में आधुनिक राजस्थानी रंगमंच को अपने लोक से लोक तत्वों के माध्यम से नव रचनाओं का सृजन करना और मंचन करना होगा तभी राजस्थानी रंगमंच बंगाली मराठी आदि भारतीय अन्य रंगमंच की तरह अपना एक अलग स्थान बना पाएगा।

ई -परिसंवाद की मुख्य अतिथि कोटा की साहित्यकार डॉक्टर अनीता वर्मा ने कहा कि राजस्थानी रंगमंच हमारे लोक संरक्षण और लोक विरासत के कारण लोक में जिंदा है इसी का उपयोग करते हुए आधुनिक राजस्थानी रंगमंच अपने आप को आगे ले जा सकता है साथ ही राजस्थानी नाटकों के लेखक ज्यादा से ज्यादा नाटक के सर्जन करें ।
ई -परिसंवाद के विशिष्ट अतिथि सोजत सिटी के शायर अब्दुल समद राही ने कहा कि राजस्थानी रंगमंच के लिए राजकीय संरक्षण की आवश्यकता तो है ही साथ ही राजस्थानी नाटक के रचनाकार और नाटक के निर्देशक के बीच में भी एक सार्थक संवाद निरंतर होना चाहिए तभी रंगमंच अपने महत्व को समाज के बीच में ले जाने में सक्षम रहेगा। इसी तरह ई परिसंवाद के अन्य विशिष्ट अतिथि रावतसर हनुमानगढ़ के कवि

गीतकार रूप सिंह राजपुरी ने कहां की राजस्थानी रंगमंच के लिए कई स्तरों पर कार्यशाला हो जिसके माध्यम से नए अभिनेता और नए निर्देशक तैयार हो जो अपनी लोक की परंपरा से रूबरू होकर नव प्रयोग कर सकें।
इसी क्रम में अपने विचार रखते हुए शायर कहानीकार कासिम बीकानेरी ने कहा कि नाटक लेखन की अधिकता और साथ ही यदि संभव हो सके तो नाटक के निर्देशक और रचनाकार किसी भी विषय को लेकर नाटक रचे तो परस्पर संवाद करें जिससे निश्चय ही नाट्य प्रस्तुति अच्छी होगी और राजस्थानी रंगमंच समृद्ध होगा ।

ई परिसंवाद में बतौर मुख्य वक्ता राजसमंद के साहित्यकार किशन कबीरा ने ई संवाद के जरिए राजस्थानी रंगमंच की दशा और दिशा को रेखांकित करते हुए लोक से जुड़े हुए विषय और लोक तत्वों को समावेश करते हुए नाटक का सर्जन हो और मंचन हो जिससे रंगमंच को समृद्ध करने की प्रक्रिया तेज होगी ।
ई -परिसंवाद में अपनी बात रखते हुए इतिहास विद डॉक्टर फारुख चौहान ने कहा कि राजस्थानी रंगमंच अपनी समृद्ध परंपरा की विरासत तो रखता ही है जिसमें हमारी रमते आती है फिर भी आधुनिक नाटक के लिए लोग का महत्व मेरी समझ में जरूरी है।
ई-परिसंवाद में कवि गिरिराज पारीक ने कहा कि लोकनाट्य हमारी लोक शक्ति है जिससे हमें आधुनिकता की और आगे बढ़ना है तभी सार्थक प्रयास होंगे।

ई -परिसंवाद का तकनीकी संचालन करते हुए जयपुर से इंजीनियर युवा कवि सुमित रंगा ने बताया कि हमारा लोक नाटक यथा रम्मत ख्याल आदि आज भी प्रासंगिक है और समाज में विपरीत परिस्थितियों में जिंदा है जिसे सुरक्षित रखने में समाज की महत्वपूर्ण भूमिका है ऐसे में हमें लोक से लोक के लिए कार्य करना चाहिए ताकि हमारा राजस्थानी रंगमंच कुछ नवाचार कर पाए और अपने महत्व को आज के संदर्भ में आगे ले जाएं ।

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