BikanerExclusiveSociety

पत्रकार-साहित्यकार प्रितपाल कौर की कहानी संग्रह लोक नगर की इकतीस कहानियों का लोकार्पण

0
(0)

बीकानेर। मुक्ति संस्था एवं शब्दरंग साहित्य एवं कला संस्थान के तत्वावधान में सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रितपाल कौर के कहानी-संग्रह लोक नगर की इकतीस कहानियाँ का लोकार्पण सोमवार को सागर होटल में किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ वत्सला पांडे ने की एवं मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार लूणकरण छाजेड थे तथा लोकार्पण समारोह के विशिष्ट अतिथि कवि – कथाकार राजेन्द्र जोशी रहें । कहानी संग्रह पर पत्रवाचन कवयित्री-आलोचक डॉ रेणुका व्यास ने किया ।
प्रारंभ में स्वागत भाषण करते हुए साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने कथाकार प्रितपाल कौर की साहित्यिक यात्रा पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि कौर के अब तक चार उपन्यास , दो कहानी संग्रह , एक कविता संग्रह एवं दो आत्मकथाओं के सम्पादन के साथ ही राजस्थानी से हिन्दी में अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है । स्वर्णकार ने बताया कि कौर ने रेडियो और टेलीविजन चैनलों के लिए भी काम किया है ।
लोकार्पण समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए कवि कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि साहित्य की विभिन्न विधाओं में कहानी सबसे सशक्त विधा है, जोशी ने कहा कि इस संग्रह की अधिसंख्य कहानियाँ सामाजिक सरोकारों की होने के कारण नगरीय जीवन की चुनौतियों, समस्याओं से पाठकों को परिचित कराने के साथ ही समाधान देने का प्रयास करती है । उन्होंने कहा कि यह कथाएँ अनुभव से उपजी कहानियाँ हैं । जोशी ने कहा कि लोक नगर की कहानियों में आम जीवन की विसंगतियों को दर्शाया गया है, उन्होंने कहा कि प्रितपाल कौर हमेशा नजदीक-दूर देखने परखने के बाद आम आदमी की बात को अपने लेखन के माध्यम से परोसती है ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ वत्सला पांडे ने कहा कि प्रितपाल कौर की कहानियों में द्वंद्व अधिक नज़र आया.. एक बेचैनी, एक कसक, साथ ही असहायता भी कहानी में समानांतर हैं. लेखिका के जीवन में और चारो ओर जो घटित हुआ या हो रहा है, वह शिद्दत से प्रस्तुत करने का हर सम्भव प्रयास किया है..
उन्होंने कहा कि लेखिका ने चीजों को दूर से नहीं बल्कि उनसे गुजरकर देखा है. यह गुजरना ही उनका हो गया.
यह एक लेखक के लिए आवश्यक भी है अन्यथा लेखन सतही रह जाता है. वे लोक की नदी को किनारे खड़े होकर बहते हुए नहीं देखती हैं, अपितु उसमें उतरकर गोते भी लगाए हैं..उनकी साँस भी फूली है, दम भी घुटा है, वे डूबी भी हैं और उबरी भी..जहां से उन्होंने अपनी कहानियाँ निकाल कर हमारे सामने रखी हैं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार लूणकरण छाजेड ने कहा कि प्रितपाल कौर पत्रकारिता से साहित्य के क्षेत्र में आई है जिसके कारण घटनाओं को सूक्ष्मता से देखने और समझने की कोशिश उनको गंभीर रचनाकार बनाता है । छाजेड ने कहा कि रचनाकार का समाज में व्याप्त विभिन्न विषयों पर गहरी नज़र दिखायी देती है ।
लोकार्पित कहानी संग्रह पर पत्रवाचन करते हुए कवयित्री-आलोचक डॉ रेणुका व्यास ने कहा कि पत्रकार और साहित्यकार प्रितपाल कौर की कहानियाँ आज के समय की कहानियां हैं जिनमें वे भारतीय सामाजिक धरातल पर स्त्री- पुरुष संबंधों की शनाख्त बड़ी निर्लिप्तता से करती नजर आती हैं। इन कहानियों में वे उन गांठों को भी पहचानने में भी कामयाब होती हैं जिनके कारण स्त्री-पुरुष संबंध इतने असहज, अस्वाभाविक और स्त्री के लिए कैद सरीखे हो चुके हैं। स्त्री को मनुष्य का मान दिलाने के लिए संघर्ष करती ये कहानियाँ कहीं भी स्त्री को कमजोर नहीं पड़ने देतीं। हमारे आसपास के जीवन में सांस लेते कटु यथार्थ के अनेक रूप इन कहानियों के विषय बनकर उभरते हैं जहां आधुनिकता के स्पर्श से वक्त बदल रहा है, स्त्री बदल रही है, पर पुरुष पुरानी रूढ़िवादी मानसिकता से घिरा जस का तस है।
लोकार्पण समारोह में साहित्यकार बुलाकी शर्मा, डॉ नीरज दइया, डॉ अजय जोशी, मधु आचार्य आशावादी, हरीश बी शर्मा, नगेन्द्र किराड़ू, नृसिंह बिन्नाणी, रितू शर्मा, संजय जनागल , कमल रंगा, नदीम अहमद नदीम, अमर चंद सोनी, अशफ़ाक कादरी, जुगल पुरोहित, सहित अनेक महानुभावों ने शिरकत की । प्रारंभ में गीतकार गौरीशंकर सोनी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन नासिर जैदी ने किया ।

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

As you found this post useful...

Follow us on social media!

Leave a Reply