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संस्कृत शिक्षा विभाग के महत्त्व व अस्तित्व के संरक्षण के लिए राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ (लोकतांत्रिक) उठाएगा आवाज

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– मुख्यमंत्री, संस्कृत शिक्षा मंत्री और मुख्यसचिव को महासंघ देगा ज्ञापन

बीकानेर। संस्कृत शिक्षा विभाग की स्थापना भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा गठित “संस्कृत आयोग” (सुनीति कुमार चटर्जी) की अनुशंसा एवं तत्कालीन कांग्रेस सरकार में माननीय मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया के सत्प्रयासों के परिणाम स्वरूप हुई थी। इस विभाग की स्थापना का उद्देश्य संस्कृत ग्रन्थों में निहित ज्ञान-विज्ञान का पठन-पाठन और वेदादिशास्त्रों का प्रायोगिक स्तर पर अनुसंधान था। राजस्थान सरकार को सुखाड़िया जी से लेकर आज तक यह गौरव प्राप्त है कि सम्पूर्ण भारत वर्ष में राजस्थान ही एकमात्र ऐसा प्रदेश रहा जिसमे संस्कृत हेतु पृथक से निदेशालय की स्थापना की गई। कॉंग्रेस सरकार 1998-2003, 2008-2013 एवम् वर्तमान सरकार के समय इस विभाग में संस्थाओं की क्रमोन्नति, शिक्षक भर्ती एवं नई संस्थाओं की स्थापना हुई। हाल ही में एक साथ विद्यालय एवं महाविद्यालय क्रमोन्नत कर संस्कृत के प्रति आत्मीय दृष्टिकोण को प्रदर्शित किया है। परन्तु संस्कृत शिक्षा के पोषक के रूप में प्रचारित करने वाली भाजपा सरकार ने कुत्सित मानसिकता के कारण आत्मश्लाघा के कारण संस्कृत शिक्षा के सेवा नियमों में 2018 में संशोधन करते हुए इसे सामान्य शिक्षा विभाग के बराबर कर दिया जो कि इसकी मूल भावना, उद्देश्य व स्वरूप को ही बदल रहा है।
इस क्रम में संस्कृत शिक्षा विभाग के स्वरूप व अस्तित्व के संरक्षण हेतु राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ (लोकतांत्रिक) के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनवारी शर्मा ने बताया कि 28 जून को महासंघ प्रदेश के मुख्यमंत्री, संस्कृत शिक्षा मंत्री और मुख्यसचिव को 12 सूत्री ज्ञापन देगा।

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