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महाराणा प्रताप का जीवन- संदेश आज भी प्रासंगिक- डाॅ. केवलिया

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बीकानेर, 12 जून। वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. मदन केवलिया ने कहा कि महाराणा प्रताप ने मातृभूमि की रक्षा व स्वतंत्रता के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया, विपरीत परिस्थितियों में भी कभी हार नहीं मानी व सिद्धान्तों से कभी समझौता नहीं किया। वे स्वतंत्रता-प्रेमी, सच्चे वीर व जननायक थे। प्रताप का जीवन-संदेश आज भी प्रासंगिक है, उनके द्वारा किये गए महान् कार्यों से युवाओं को हमेशा प्रेरणा मिलती रहेगी।
      डाॅ. केवलिया शनिवार को महाराणा प्रताप जयंती की पूर्व संध्या पर राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की ओर से प्रतिमान संस्थान, सादुलगंज में आयोजित ‘महापुरुष महाराणा प्रताप’ विषयक राजस्थानी संगोष्ठी में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप को सदैव एक राष्ट्रीय नायक के रूप में याद किया जाएगा। प्रताप ने मातृभूमि की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए आजीवन संघर्ष किया। महाराणा प्रताप को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम भी उनकी तरह जन्मभूमि की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर दें।
       राजकीय डूंगर महाविद्यालय में सह आचार्य डाॅ. ऐजाज अहमद कादरी ने कहा कि महाराणा प्रताप के लिए कर्नल टाॅड ने लिखा था कि पुण्यतीर्थ हल्दी घाटी के विराट पहाड़ी देश में ऐसा कोई स्थान नहीं जो प्रताप की वीरता के गौरव से दमक नहीं रहा हो, हल्दी घाटी मेवाड़ की थर्मोपोली व दिवेर मेवाड़ का मैराथन है।
      बीकानेर पापड़-भुजिया मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष वेदप्रकाश अग्रवाल ने कहा कि महाराणा प्रताप ने शरण में आए लोगों को सदैव आश्रय दिया व महिलाओं के सम्मान की रक्षा की। वे छापामार युद्धकला में भी अत्यंत निपुण थे। अनेक कष्ट सहकर भी उन्होंने मातृभूमि के गौरव की रक्षा की।
       एम. डी. डिग्री महाविद्यालय, बज्जू के प्राचार्य डाॅ. मिर्जा हैदर बेग ने कहा कि महाराणा प्रताप व उनके सेनापति हकीम खान सूर की मित्रता सामाजिक सद्भाव की मिसाल है। महाराणा प्रताप के शौर्य की उनके शत्रु भी प्रशंसा करते थे। अकादमी सचिव शरद केवलिया ने कहा कि महाराणा प्रताप को कला व साहित्य से भी लगाव था, वे विद्वानों व कलाकारों का आदर करते थे। महाकवि कन्हैयालाल सेठिया ने पातल‘र पीथळ कविता में प्रताप के संघर्ष का चित्रण किया है-‘अरे घास री रोटी ही जद वन बिलावड़ो ले भाज्यो, नान्हो-सो अमर्यो चीख पड़्यो, राणा रो सोयो दुख जाग्यो। हूं लड़्यो घणो हूं सह्यो घणो, मेवाड़ी मान बचावण नै।’

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